रामायण काल में जिन्हें असुर कहा जाता था, वे भी हमारे पुरखो "होमोसेपियं" की ही औलाद थे ,पर उनके सामाजिक व्यवहार में जो दुराचरण था और उनकी मान्यता जो की संहारक और अमानवीय थी जिसके चलते उन्हें असुर कहा जाता था !
असुर कहना याने एक पूरे के पूरे समाज के प्रति धारणा बनाती है अमानवीय और संहारिक प्रवृति की !
ऐसा नहीं था उस समाज के कुछ लोग सदाचारी नहीं थे असुरो में भी बड़े प्रकांड देवभक्त और धर्मी थे पर उस समाज ने दुनिया के सामने अपनी जो छवि बनाई थी उसकी छवि एक भयानक रूप दिखाती है, दोष उस पूरे के पूरे समाज का था क्युकी उसने कर्मो द्वारा अपना ऐसा रूप दुनिया के सामने रक्खा था !
आज इस्लाम के मानने वालो ने भी विश्व में असुरो का अनुकरण कर लिया है ,वे उत्पात की इतनी पराकाष्ठा तक पहुच चुके है की असुर्तुल्या हो चुके है अब उनमे चंद सदाचारियो का आगे आ कर कहना की नहीं हम तो शान्ति अमन के वास्तेदार है और हम दुनिया के तिरस्कार का शिकार हो रहे है!!!
वो अगर कहते है आतंकवाद वाले हमारे भाई नहीं तो ये बताओ उन्हें पनाह क्यों दे रखा है ???
क्यों जेहाद का नाम ले कर दहशत फैलाने वालो के खिलाफ पूरा का पूरा कौम खुल कर सामने नहीं आ रहा ????
क्यों जामिया के पास में जब आतंकियों से मुठभेड़ होती है तो पुलिस बल पर पत्थर फेके जाते है ??
कश्मीरियों ने अगर आतंकियों को पनाह नहीं दी होती और भारत का साथ दिया होता तो क्या आतंकवाद सर उठा सकता ???
आजादी के साठ साल बाद वो कौन नए मुसलमान आ गए और किस नए कुरआन को पढ़ कर आ गए जो उन्हें वंदेमातरम पर ऐतराज़ हो गया साठ साल तक जो गाये थे वो अब मुसलमान नहीं है क्या ???
यदि मुस्लिम कौम सच्चा सेकुलर है तो क्यों आर्टिकिल ३७० के खिलाफ आवाज़ उठा पुनः पंडित भाइयो को कश्मीर में जगह वापस नहीं देती ???
हम कब कहते है की सारे मुसलमान आतंकी है??? हम तो ये याद दिला रहे है की सारे आतंकी मुसलमान है!!!
कब कहा हमने वीर अब्दुल हामिद भारत माँ का सपूत न था ? फिर तुम कहोगे अफज़ल/कसाब को भी अपना लो ???
२६ जनवरी को सारा धर्मनिरपेक्ष देश तिरंगा फेहराता है पर मुसलमानों का कश्मीर सरकारी तौर से कहता है इस प्रक्रिया से उन्माद फैलेगा लिहाज़ा तिरंगा न फहराया जाए !!! और तुम इस देश के लोगो से कहते हो की कौम निर्दोष है और देशभक्त है जिसे वे मान लेंगे ???
जमातुल दावा ,हिजबुल मुजाहिदीन ,इंडियन मुजाहिदीन, लश्करे तैयबा इनके खिलाफ किसी उलेमा ,मौलवी या ज़मात ने कभी फतवा सुनाया है??? की इनका साथ देने वाला काफिर है कौम का दुश्मन है और अल्लाह उसे दोजक के आग नसीब करवाएगा , ये जेहाद नहीं ज़लालत है और ये अल्लाह के बन्दों का काम नहीं है ??? किसी उलेमा को जानते हो तो हमें भी बताओ ???
रही बात बूते वाले मुद्दे पर, तो आप ने अपनी अगली पोस्ट पर महफूज़ भाई को सफाई दी है उनकी बात का जवाब नहीं कृपया उनकी टिप्पणी में उठाये गए सवालों का जवाब दे !
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सबको सम्मति दे भगवान् "कहने वाले की असली आवाज में कुछ ५० मिनट से ज्यादा का संकलन मेरे पास है जिसे सुन कर मुसलमानों का तब आज़ादी के वक्त क्या विचारधारा थी समझ जायेंगे, तब भी जैसे थे (इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान लेने के बाद ) आज भी ऐसे ही है !
किशोर जी आप किसी के साथ रहो पर ये साफ़ है हमारे साथ तो नहीं हो फिर किसी के साथ रहो क्या फर्क पड़ता है ???
जय हिंद !!!