ए भैया फिर ब्लॉग पर हिन्दू-मुस्लिम दंगा न करवाना यार। बड़ी मुश्किल से बंद हुआ है।
इ देखो! बवाल भाई तो हमको दंगाई बना गए !!!
अरे बवाल भाई ये आप को नया एंगिल कहा से मिला ??? बात तो किशोर अजवानी से हो रही है, और कौन कहता है की हम सेकुलर नहीं है, बस सच को सच कहने से डरते नहीं है !!!
हम कब बोले इस देश पर मुसलमानों का हक़ नहीं है ?
हम कब बोले की मुसलमान ने देश के लिए बलिदान नहीं दिया ?
हम कब बोले सारे मुसलमान आतंकवादी है ?
हम कब बोले सारे मुसलमान देश के दुश्मन है ?
हम कब बोले की भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करो और मुसलमानों को बाहर भगा दो ?
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* हमने कहा कश्मीर पर कश्मीरी पंडितो का भी हक़ है उसे दिलाने के लिए आगे आओ ! !
* हमने कहा जो मुसलमान आतंकवाद का साथ दे रहे है कौम उन्हें चिन्हित करे !
* हम कहते है मज़हब के नाम पर कतल करने वाले कातिलो को पकड़वाओ ,उनका साथ मत दो !
* हम कहते है दुश्मन के देश से अमन की आशा मत करो, ये उसकी फितरत नहीं है !
* हमने कहा उलेमाओं से जेहाद के नाम पर दहशत फैलाने वाले दहशतगर्दो पर फतवा जारी करे,की ऐसा करने वालो को क़यामत के दिन दोज़ख की आग नसीब होगी !
* हमने कहा बता दो कौम के नाम पर नफरत फैलाने वालो को की इस्लाम उनकी बपौती नहीं है, उनका जेहाद "जेहाद" नहीं है, और अमन चाहने वाली इस्लामी कौम कतई उनके साथ नहीं है !
तो भैया ज़रा ये बता दो की हमने ऐसा क्या , कहाँ और कब कहा जिससे हम दंगा करवा दंगाई बने ???
अब फिरभी इसपर कोई दंगा करने आये तो "करे" !!!!
10 comments:
आपकी पिछली पोस्ट पर बवाल भाई ने सिर्फ़ कमेंट किया है, आपके सवालों का जवाब नहीं दिया…। आज भी आपने जिस स्पष्टता से सवाल रखे हैं इसका जवाब भी मिलना मुश्किल है…।
यही तो प्रोब्लम है कि आप लखनऊ में रहते हुए भी यह नहीं समझ पाए कि इस देश के लखनवी नवावो को सिर्फ मीठा सुनना पसंद है, भले ही वह सरासर झूठ ही क्यों न हो ! सच कड़वा होता है इसलिए ये उसे सुनने के आदी नहीं, जबाब देना तो दूर की बात है !
अब जवाब कहाँ से लाए? आपको भी पता है, हमको भी और उनको भी. मगर चिल्लाना धंधा है.
हा हा इसी को कहते हैं धनात्मक चिंतन का ऋणात्मक क्रियान्वयन।
जवाब तो हम हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई चारों को पहले ही दे चुके हैं अपनी पोस्ट पर। उसे ही पढ़ लें लाल-और-बवाल पर जाकर।
(मुहम्मद रॉबर्ट सिंह दुबे)। जी ठण्डा अपने आप हो जाएगा। काहे अपने आपको दंगाई कह रहे हैं जी। आपकी सोच को तो उम्दा सोच कहा जाता है। आप दंगाई कतई नहीं। हमने तो इस डर से कह दिया था भाई के फिर ब्लॉग पर वैसी कलह ना मचे जैसी कुछ दिन पहले मची थी। आप ब्रदरवाईज़ को अदरवाइज़ ले बैठे। मुआफ़ कीजिएगा।
शानदार और वाकई में उम्दा सोच. कोई हिन्दुओं की सही बात भी लिख दे तो वह साम्प्रदायिक. और कट्टर इस्लामी विचारधारा का पोषक बने तो वह धर्मनिरपेक्ष.
ऐसे प्रश्नों का जवाब देना सांप्रदाकता माना जाएगा ....
नीयत साफ है तो चिंता काहे की
@ भाई सुरेश चिपलूनकर , भाई एस बी तमारे ,भाई पी सी गोदियाल , भाई संजय बैगाणी , भाई भारतीय नागरिक ,भाई जुगलबंदी , भाई दिगंबर नासवा, एवं भाई अजय आप सभी का तहेदिल शुक्रिया !!!
इस पोस्ट पर आयीं टिप्पणियों और नहीं आयीं टिप्पणियों से साफ़ साफ़ है की "सांच को आंच नहीं "
अगर इन दुष्टों को ये बातें समझ आ जायें ते क्यों शान्तिप्रिय हिन्दूओं को इन मानबता के दुशमनों को इन्हीं की भाषा में जबाब देने के लिए बाध्या होना पड़े। किसी ने शायद ईन्हीं शातिरों को देखकर कहा है लातों के भूत बातों से नहीं मानते
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