Thursday, August 2, 2007

राष्ट्रवादी "मूस मुटाये लोढा होए"

आज देश में जो कुछ भी गलत हो रहा हैं उसका दोष लोग नेता,सरकारी तंत्र,पुलिस और भ्रष्ट प्रशासन को देते हैं! "भ्रष्ट" यानी भ्रष्ट नेता,भ्रष्ट सरकारी तन्त्र, भ्रष्ट पुलिस... तमाम भ्रष्ट! तो समस्या जन्म लेती है भ्रष्ट आचरण से यानी इन सभी के पीछे है भ्रष्टाचार! और भ्रष्टाचार क्यो है? नैतिक मूल्यों की कमी से !..... राष्ट्रवादी मूल्यों के अव्मूल्यन सें !.... देश में IAS, IPS, मंत्री, नेता,वैग्यानिक,सैनिक,डाँक्टर आदि आदि हज़ार नौकरीवर,पेशेवर,विशेषग्यवर हैं जिनकी इस देश में कोई कमी नही हैं,पर जो कमी है वो इन सब मे समाहित है "भ्रष्टाचार" ! अब डाँक्टर बनना है तो बायोलाजी पढो, वैग्यानिक बनना है तो फ़िज़िक्स केमेस्ट्री पढो,IAS IPS बनना है तो सामान्य ग्यान, और नेता बनने को तो अंगूठा छाप भी चलेगा,उसे तो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपती बनने में भी कोई संवैधानिक बाधा नही है! तो भईया नैतिकता आये कहाँ से? Moralscience का विषय तो शिक्षा व्यवस्था मे आप की समझ की कली खिलने से पहले ही काफ़ूर हो चलता है(चौथी पाँचवी तक) उसके बाद पाईथागोरस प्रमेय, H2O यानी २ हाइड्रोजन १ आक्सीजन बनाता है पानी, प्लासी का युध्द और मेंढक चीरने के बाद ही बडे बडे सर्टिफ़िकेट मिलते है और उसके बाद ही IAS,IPS,वैग्यानिक,सैनिक,डाँक्टर बनने की प्रशस्ती प्राप्त होती है! डाँक्टर बनने में इस बात की कोई परीक्षा नही ली जाती की वो कितना नैतिक डाँक्टर बनेगा, इंजीनियर भी ब्रिज बनाने की काबिलियत तो समझा देता है पर कितने नैतिक रूप से? इसकी परीक्षा नही होती, इसी तरह IAS,IPS को भी ईमानदारी की कोई परीक्षा नही देनी पडती, रहा नेता ... तो वो पहले से ही हर शर्त से ऎग्ज़ेम्टेड है! एक तरफ़ से हमको तो लगता है कि "भ्रष्टाचार" से किसी को परेशानी नही है,क्योंकी जब जब देश दुनिया ने कोई परेशानी को पहचाना है उसका निदान भी ढूढा है... पोलियो के लिये ड्राप आयी,हेपेटाइटिस के लिये इंजेक्शन,और AIDS के लिये कन्डोम ! पर भ्रष्टाचार निरोध हेतु न ड्राप की खोज हो रही है ना इंजेक्शन की ना तो कोई कन्डोम ही इजाद किया जा रह है... और तो और बाबा रामदेव के पास भी कपाल्भाती जैसा कुछ कारगर इस विषय में नही है! तो "भ्रष्टाचार" मिटे तो मिटे कहाँ से? ऊपर से ग्लोब्लाइजेशन से आ रहा है और उपभोगतावाद इस समय देश की किसी को नही पडी, बजरंगलाल छत्तीसगढ़वाले जैसे और भी कुछ लोग ज़रूर इस पर काम कर रहे होंगे पर वे भी क्या करें राष्ट्रहित सोचने वालो की स्थिति तो है मानो "मूस मुटाये लोढा होए"