Wednesday, December 30, 2009

"ललकार है"सभी धर्म और मान्यता के ठेकेदार जो राजनैतिक गलियारों पर टुकड़े बटोरते फिरते है या गिने चुने दिनों पर संस्कृति के नाम पर युवा और युवतियों को लप्पड़ भन्नाटा जड़ दाईत्व की इतिश्री समझते है!




सभी धर्म और मान्यता के ठेकेदार जो राजनैतिक गलियारों पर टुकड़े बटोरते फिरते है या गिने चुने दिनों पर संस्कृति के नाम पर युवा और युवतियों को लप्पड़ भन्नाटा जड़ दाईत्व की इतिश्री समझते है उन्हें ललकार है !

मेरे एक सहयोगी ने youtube पर एक विडियो दिखाया जिसे देख वो विचलित हो उठा था ! मामला बड़ा संगीन है ,मान्यता से इतना बड़ा खिलवाड़,बात इतनी शर्मनाक है की मै उस वीडियो को embed नहीं कर रहा हूँ बस URL दे रहा हूँ जिन्हें देखना है वे इसे " पापी youtube " पर जा कर देख ले !!!
http://www.youtube.com/watch?v=dOfhC8jC73Y
http://www.youtube.com/watch?v=K8M4Onv92W8

राम के नाम पर वोट मांगने वाले और रोटी मांगने वाले... किसी की क्या नज़र नहीं पड़ी कभी ???

अब हमें ही कुछ कारगर करना होगा इसपर अतः मै निवेदन कर सहयोग की अपेछा करता हूँ आप साथियो से, क़ानूनविदों से और साइबरला के तज्ञों से कृपया सुझाव दे !

( अन्य मान्यता के लोग कृपया पृथक न हो ये आप के साथ भी हो रहा हो सकता है या हो सकता है अतः एकजुट हो , क्युकी ये आस्था और मान्यता को आहात करने वाला विषयवास्तु है )

साथियो निम्नलिखित पर मार्गदर्शन कर योगदान करे !

क्या गूगल,youtube को मजबूर किया जा सकता है इन आपत्तिजनक सामग्री पर लगाम कसने को ?
क्या इन वीडियो को किसी प्रकार से बंद किया जा सकता है ?
क्या दोषियों को चिन्हित कर उन्हें दण्डित किया जा सकता है ?
आखिर क्या कारगर रास्ता अपनाया जाए ताकि भविष्य में इस तरह का कुकृत्य कोई न कर सके ?



Saturday, December 12, 2009

जाकिर भाई सलीम के वकील है या जज ???


भाई जाकिर अली उर्फ़ "रजनीश" आप का लेख पढ़ा तो तमाम सवाल ज़ेहन में उभर आये उम्मीद करता हूँ आप इन सब का जवाब देने में सक्षम होंगे !

1 आप की भूमिका वकील की कह रहे है तो न्यायाधीश की तरह ब्लॉग जगत को फैसला किस हक़ से सुना रहे है ?
2 आप न मौके पर थे, न तो आप की मुझसे कोई बात हुई है और शायद ही महफूज़ भाई से ही, तो आप नतीजा सिर्फ सलीम भाई के कहे पर निकाल रहे है ? कैसे ???
3 महफूज़ भाई को जो लगा वो उन्होंने सारे ब्लॉग जगत के भाइयो से साझा किया, मैंने भी अपनी बात सबके सामने रक्खी बिना किसी परिणाम की चिंता किये हुए पर ऐसा क्यों है की सलीम के लिए वो स्वयं न लिख कर आप को लिखना पड़ रहा है ?
4 आखिर एक ही मुलाक़ात में आप सलीम भाई को बड़ी गहराई से जान गए ??? कैसे ? यहाँ तो जीवनसाथी को समझने में ही सारा जीवन गुज़र जाता है ?
5 मैंने पहले भी कहा है की महफूज़ भाई शुरू से कहते है की सलीम भाई को कोई तो है जो गुमराह करता है ! इस वाकये से शक की सुई क्या आप पर नहीं टिक रही? क्यों सारे ब्लॉग जगत में आप ही और सिर्फ आप ही उनके हमदम है ? ब्लॉग जगत से साझा क्यों नहीं किया जा रहा ???
6 कही आप इस मुद्दे की लोकप्रियता भंजाने की नीयत से तो नहीं लिख रहे है ?
7 आप ने सलीम भाई से क्यों नहीं कहा की इस बात को वे स्वयं अपने ब्लॉग के माध्यम से कहे ? क्यों आप ही आगे आये ?
8 आप ने अपने लेख पर पारदर्शिता दिखाते हुए मुलाक़ात पर मुद्दे की कोई बात क्यों साफ़ साफ़ दो टूक नहीं लिखा ? सतही बात कर ही फैसला ब्लॉग जगत पर थोप दिया ?
9 अगर सलीम भाई आप की घोषणा के अनुरूप नहीं अनुसरण करते है तो क्या आप इसकी गारंटी ले रहे है ? सारे ब्लॉग जगत के साथियो को ये बात ज़रूर बताये!!!
10 आप ने खुद माना है की उस समय महफूज़ भाई ने आप को वक़्त की नजाकत को देखते हुए आवाज़ दिया था फिर आप तब क्यों नहीं आये ?

सारे वाकये से महफूज़ भाई काफी आहात है उन्हें नाहक बहुत कुछ सुनना पड़ा है और इसकी नैतिक ज़िम्मेदारी मै लेता हूँ और महफूज़ भाई से माफ़ी मांगता हूँ !
अगर सलीम भाई का ह्रदयपरिवर्तन हुआ है तो वाकई उनका तहे दिल से स्वागत है !यदि ये हृदयपरिवर्तन आप के सुझाव से है तो आप को तहे दिल से शुभकामना, हम जो न कर सके वो आप ने कर दिखाया पर अफ़सोस आप ने थोड़ी जल्दी की होती!

सलीम भाई हमारे अज़ीज़ भाई है हम खुले दिल से उनके इस स्वक्ष विचार का स्वागत करते है मौका मिलेगा तो अब उनसे गले मिल कर भी आऊंगा !

Thursday, December 10, 2009

लखनऊ प्रकरण: मैंने सलीम खान को नहीं मारा!!!

कहते है "जब वख्त बुरा होता है तो ऊट पर बैठे को कुत्ता काट लेता है " मै तो गधे पर सवार था ! सोचता हूँ क्या ज़रुरत थी मुझे सलीम खान को महफूज़ भाई से कह कर बुलवाने की !
हुआ यू की सलीम भाई को मैंने मिलने का निवेदन किया तो वे १५ मिनट में आ गए!
हम दोनों ठहरे लखनऊवा तो एक दुसरे के बारे में ज्ञानवर्धन करने लगे ! मैंने सलीम भाई के सिक्षा दीक्षा के बारे में पूछा, तो वे लखनऊ के मेरे यार दोस्तों के बारे में !!!
दोनों की मंशा एक दुसरे के परिचित से परिचित तलाशने की थी जिसे कहते है कॉमनफ्रेंड ! इसी सिलसिले में मै अपने के के सी और लोहिया छात्र वाहिनी वाले दिनों के बारे में बता रहा था ,सलीम और मै एक दुसरे से मुखातिब थे जिससे महफूज़ भाई बोर हो रहे थे सो वो खुद को बहलाने के लिए दाहिने बाए हो लिए !

मै सलीम के ब्लॉग विचारों का घोर विरोधी रहा हूँ ,काफी पहले महफूज़ भाई से सलीम के बाबत जब बात हुई थी तो उन्हों ने कहा था " सौरभ भाई सलीम के विचारों से मै सदा असहमत रहा हूँ जिसके चलते मेरा उससे झगडा भी हो चुका है! उसे बरगलाया गया है ! अपने लालन पालन में सलीम बड़े ही सदभाव से रहा है यहाँ तक उसे काफी श्लोक भी कंठस्थ है, कई हिन्दू उसके प्रिय अभिन्न मित्र है बस वो भ्रमित है!
मुझे उम्मीद की किरण दिखाई दी और तभी सोचलिया था की जब भी अब कभी लखनऊ जाऊंगा अपने इस भाई( सलीम ) को विनम्रता से समझाने की कोशिश करूंगा ताकि सामजिक सौहार्द का सिपाही बन वो भी कदम से कदम मिला कर साथ चले !!

अच्छा!... अब चूकी मै सलीम भाई के विचारों से सहमत नहीं रहा तो स्वाभाविक था मेलमिलाप के बाद जो गर्मजोशी थी वो बहस में तब्दील हुई और बहस हुज्जत में !!!

अब महफूज़ भाई लौटे तो ध्यान बटा! कुछ लोग आस पास होआये थे जो रस ले रहे थे ! महफूज़ भाई बोले " यार धीरे बात करो लोग इधर देख रहे है! चलो कही और चले !"
अब हम सहारा भवन की और चल पड़े जहा मेरी और महफूज़ भाई की गाडी खड़ी थी,सलीम अपनी गाडी से बढे और मै और महफूज़ पैदल !

लखनऊ की ठण्ड शाम में स्वेटर और जैकेट पहने महफूज़ भाई के माथे पर पसीना साफ़ चमक उठा था ,सब सहज था पर महफूज़ भाई टेंशन में थे ,न जाने उन्हें क्या ग़लतफ़हमी हुई! बोले भाई आप लोग सब किये धरे पर पानी फेर देंगे मैने कहा भाई आप निश्चिंत रहे ऐसी कोई बात नहीं है भरोसा कीजिये ! अब मालूम हो रहा है महफूज़ भाई किन्ही पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो चुके थे!


सहारा भवन पर सलीम भाई पहले पहुच चुके थे फह्फूज़ भाई ने ग्रीनटी आफर किया मै पहले ही काफी चाय गटक चुका था सो मै कहा "भाई आप लोग रुको मै ले कर आता हूँ आप लोगो के लिए" महफूज़ भाई बोले "क्यों शर्मिंदा करते हो निमंत्रण मैंने दिया है और वैसे भी तुम विश्वविद्यालय में मुझ से एक साल जूनियर हो" कहकर अपने और सलीम के लिए चाय लेकर आये!
इसबीच थोडा सा ही सही पर हां मुद्दों को लेकर हमारी गरमा गरम बहस हुई इसी बीच महफूज़ भाई ने मोबाइल से फोटो खीची बातो में उलझ मैंने ध्यान नहीं दिया !

पर भाइयो हमने पूरे प्रकरण में कोई हाथापाई नहीं की ना ही किसी अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया !

सलीम भाई से मेरा वैचारिक मतभेद बना हुआ है और इसपर मै ब्लॉग पर ही उनसे निपटने के लिए सक्षम हूँ ! और हां हाथापाई की मानसिकता वाले तो सलीम भी नहीं लगे!
मेरा मोबाइल सेवा दाता ने विच्छेदित कर रखा था सो महफूज़ भाई से बाद में इस बारे में कोई बात नहीं हो सकी ,मै समय के बहुत बुरे दौर से गुज़र रहा हूँ सो इसपर ध्यान न दे सका ,कल ब्लोग्वानी पर हाहाकार देखा मजबूरन समय निकलना पड़ रहा है !

पर सार्थक होगा यदि आप महफूज़ भाई के द्वारा अपने उस पोस्ट पर किये सवाल का जवाब दे की....
क्या ब्लागरों को भड़काऊ चीज़ें लिखनी चाहिए? क्या धर्म ऐसी चीज़ है जिसके लिए सड़कों पे झगडा जाये? क्या किसी धर्म के खिलाफ लिखने से या किसी धर्म के बारे में लिखने से सहिष्णुता बढ़ेगी या फिर विद्वेष फैलेगा?