कहते है "जब वख्त बुरा होता है तो ऊट पर बैठे को कुत्ता काट लेता है " मै तो गधे पर सवार था ! सोचता हूँ क्या ज़रुरत थी मुझे सलीम खान को महफूज़ भाई से कह कर बुलवाने की !
हुआ यू की सलीम भाई को मैंने मिलने का निवेदन किया तो वे १५ मिनट में आ गए!
हम दोनों ठहरे लखनऊवा तो एक दुसरे के बारे में ज्ञानवर्धन करने लगे ! मैंने सलीम भाई के सिक्षा दीक्षा के बारे में पूछा, तो वे लखनऊ के मेरे यार दोस्तों के बारे में !!!
दोनों की मंशा एक दुसरे के परिचित से परिचित तलाशने की थी जिसे कहते है कॉमनफ्रेंड ! इसी सिलसिले में मै अपने के के सी और लोहिया छात्र वाहिनी वाले दिनों के बारे में बता रहा था ,सलीम और मै एक दुसरे से मुखातिब थे जिससे महफूज़ भाई बोर हो रहे थे सो वो खुद को बहलाने के लिए दाहिने बाए हो लिए !
मै सलीम के ब्लॉग विचारों का घोर विरोधी रहा हूँ ,काफी पहले महफूज़ भाई से सलीम के बाबत जब बात हुई थी तो उन्हों ने कहा था " सौरभ भाई सलीम के विचारों से मै सदा असहमत रहा हूँ जिसके चलते मेरा उससे झगडा भी हो चुका है! उसे बरगलाया गया है ! अपने लालन पालन में सलीम बड़े ही सदभाव से रहा है यहाँ तक उसे काफी श्लोक भी कंठस्थ है, कई हिन्दू उसके प्रिय अभिन्न मित्र है बस वो भ्रमित है!
मुझे उम्मीद की किरण दिखाई दी और तभी सोचलिया था की जब भी अब कभी लखनऊ जाऊंगा अपने इस भाई( सलीम ) को विनम्रता से समझाने की कोशिश करूंगा ताकि सामजिक सौहार्द का सिपाही बन वो भी कदम से कदम मिला कर साथ चले !!
अच्छा!... अब चूकी मै सलीम भाई के विचारों से सहमत नहीं रहा तो स्वाभाविक था मेलमिलाप के बाद जो गर्मजोशी थी वो बहस में तब्दील हुई और बहस हुज्जत में !!!
अब महफूज़ भाई लौटे तो ध्यान बटा! कुछ लोग आस पास होआये थे जो रस ले रहे थे ! महफूज़ भाई बोले " यार धीरे बात करो लोग इधर देख रहे है! चलो कही और चले !"
अब हम सहारा भवन की और चल पड़े जहा मेरी और महफूज़ भाई की गाडी खड़ी थी,सलीम अपनी गाडी से बढे और मै और महफूज़ पैदल !
लखनऊ की ठण्ड शाम में स्वेटर और जैकेट पहने महफूज़ भाई के माथे पर पसीना साफ़ चमक उठा था ,सब सहज था पर महफूज़ भाई टेंशन में थे ,न जाने उन्हें क्या ग़लतफ़हमी हुई! बोले भाई आप लोग सब किये धरे पर पानी फेर देंगे मैने कहा भाई आप निश्चिंत रहे ऐसी कोई बात नहीं है भरोसा कीजिये ! अब मालूम हो रहा है महफूज़ भाई किन्ही पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो चुके थे!
सहारा भवन पर सलीम भाई पहले पहुच चुके थे फह्फूज़ भाई ने ग्रीनटी आफर किया मै पहले ही काफी चाय गटक चुका था सो मै कहा "भाई आप लोग रुको मै ले कर आता हूँ आप लोगो के लिए" महफूज़ भाई बोले "क्यों शर्मिंदा करते हो निमंत्रण मैंने दिया है और वैसे भी तुम विश्वविद्यालय में मुझ से एक साल जूनियर हो" कहकर अपने और सलीम के लिए चाय लेकर आये!
इसबीच थोडा सा ही सही पर हां मुद्दों को लेकर हमारी गरमा गरम बहस
हुई इसी बीच महफूज़ भाई ने मोबाइल से फोटो खीची बातो में उलझ मैंने ध्यान नहीं दिया ! पर भाइयो हमने पूरे प्रकरण में कोई हाथापाई नहीं की ना ही किसी अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया !
सलीम भाई से मेरा वैचारिक मतभेद बना हुआ है और इसपर मै ब्लॉग पर ही उनसे निपटने के लिए सक्षम हूँ ! और हां हाथापाई की मानसिकता वाले तो सलीम भी नहीं लगे!
मेरा मोबाइल सेवा दाता ने विच्छेदित कर रखा था सो महफूज़ भाई से बाद में इस बारे में कोई बात नहीं हो सकी ,मै समय के बहुत बुरे दौर से गुज़र रहा हूँ सो इसपर ध्यान न दे सका ,कल ब्लोग्वानी पर हाहाकार देखा मजबूरन समय निकलना पड़ रहा है !
पर सार्थक होगा यदि आप महफूज़ भाई के द्वारा अपने उस पोस्ट पर किये सवाल का जवाब दे की....
क्या ब्लागरों को भड़काऊ चीज़ें लिखनी चाहिए? क्या धर्म ऐसी चीज़ है जिसके लिए सड़कों पे झगडा जाये? क्या किसी धर्म के खिलाफ लिखने से या किसी धर्म के बारे में लिखने से सहिष्णुता बढ़ेगी या फिर विद्वेष फैलेगा?