Wednesday, September 19, 2007

अनिवासी पूर्वांचली बाटी चोखा कैसे बनाये

बाटी के लिये सामग्री
*४ कप गेहु का आटा ठन्डे पानी से गून्द ले!
बाटी मे भरने के लिये सामग्री
१ कप सत्तु,
२ टेबल स्पून लाल मिर्चे के अचार वाला सरसों का तेल
२ चुटकी हींग
१ टी स्पून अज्वाइन
१ टी स्पून मंगरैल
१ बडा़ प्याज़ बारीक काटा हुआ
१० लहसुन के कोये
१ टी स्पून निम्बू का रस
नमक स्वाद अनुसार।
सारी सामग्री को अच्छी तरह मसल कर मिला लें और गूँदे हुए आँटे मे भर के गोलाकार लोईयाँ बना लें और इन्हे गर्मओवन में मद्धम आँच पर ५ मिनट तक और इसके बाद हल्का भूरा होने तक धीमी आँच मे पकायें।

चोखा के लिये सामग्री
१ बडा़ बैगन
२ टमाटर २ प्याज़ बारीक कटा हुआ
२ बडे आलू
१० कोए लेह्सुन
४ हरी मिर्च बारीक कटा हुआ
१ टी स्पून निम्बू का रस
नमक और धनिया पत्ती अन्दाज़ से।
आलू,बैगन(इसमें लहसुन पिरा लें),टमाटर ओवन में पका लें. अब पके आलू और बैगन को छील के टमाटर के साथ और बाकी सामग्री के साथ अच्छी तरह मिला लें ,चोखा तैयार है।
अब गर्म बाटी को मक्खन या देसी घी में डुबो कर चोखे के साथ परोसें

पंछी बोला चार पहर "रामकांत दीक्षित"


रामकांत दीक्षित जी की एक रोचक लघुकथा धुंधली यादों को समेट कर लिख रहा हूँ जो मैंने स्कूल के दिनों में पढी़ थी ।






पुराने समय की बात है। एक राजा था। वह बड़ा समझदार था और हर नई बात को जानने को इच्छुक रहता था। उसके महल के आंगनमें एक बकौली का पेड़ था। रात को रोज नियम से एक पक्षी उस पेड़ पर आकर बैठता और रात के चारों पहरों के लिए अलग-अलग चार तरह की बातें कहा करता। पहले पहर में कहता :
“किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं”
दूसरा पहर लगते बोलता :
“ऐसा कहूं न दीख,
ऐसा कहूं न दीख !”
जब तीसरा पहर आता तो कहने लगता :
“अब हम करबू का,
अब हम करबू का ?”
जब चौथा पहर शुरू होता तो वह कहता :
“सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !”
राजा रोज रात को जागकर पक्षी के मुख से चारों पहरों की चार अलग-अलग बातें सुनता। सोचता, पक्षी क्या कहता ?पर उसकी समझ में कुछ न आता। राजा की चिन्ता बढ़ती गई। जब वह उसका अर्थ निकालने में असफल रहा तो हारकर उसने अपने पुरोहित को बुलाया। उसे सब हाल सुनाया और उससे पक्षी के प्रशनों का उत्तर पूछा। पुरोहित भी एक साथ उत्तर नहीं दे सका। उसने कुछ समय की मुलत मांगी और चिंतित होकर घर चला आया। उसके सिर में राजा की पूछी गई चारों बातें बराबर चक्कर काटती रहीं। वह बहुतेरा सोचता, पर उसे कोई जवाब न सूझता। अपने पति को हैरान देखकर ब्राह्रणी ने पूछा, “तुम इतने परेशान क्यों दीखते हो ? मुझे बताओ, बात क्या है ?”
ब्राह्राणी ने कहा, “क्या बताऊं ! एक बड़ी ही कठिन समस्या मेरे सामने आ खड़ी हुई है। राजा के महल का जो आंगन है, वहां रोज रात को एक पक्षी आता है और चारों पहरों मे नितय नियम से चार आलग-अलग बातें कहता है। राजा पक्षी की उन बातों का मतलब नहीं समझा तो उसने मुझसे उनका मतलब पूछा। पर पक्षी की पहेलियां मेरी समझ में भी नहीं आतीं। राजा को जाकर क्या जवाब दूं, बस इसी उधेड़-बुन में हूं।”
ब्राह्राणी बोली, “पक्षी कहता क्या है? जरा मुझे भी सुनाओ।”
ब्राह्राणी ने चारों पहरों की चारों बातें कह सुनायीं। सुनकर ब्राह्राणी बोली। “वाह, यह कौन कठिन बात है! इसका उत्तर तो मैं दे सकती हूं। चिंता मत करो। जाओ, राजा से जाकर कह दो कि पक्षी की बातों का मतलब मैं बताऊंगी।”
ब्राह्राण राजा के महल में गया और बोला, “महाराज, आप जो पक्षी के प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं, उनको मेरी स्त्री बता सकती है।”
पुरोहित की बात सुनकर राजा ने उसकी स्त्री को बुलाने के लिए पालकी भेजी। ब्राह्राणी आ गई। राजा-रानी ने उसे आदर से बिठाया। रात हुई तो पहले पहर पक्षी बोला:
“किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं ?”
राजा ने कहा, “पंडितानी, सुन रही हो, पक्षी क्या बोलता है?”
वह बोली, “हां, महाराज ! सुन रहीं हूं। वह अधकट बात कहता है।”
राजा ने पूछा, “अधकट बात कैसी ?”
पंडितानी ने उत्तर दिया, “राजन्, सुनो, पूरी बात इस प्रकार है-
लंका में रावण भयो बीस भुजा दश शीश,
माता ओ की जा कहे, किस मुख दूध पिलाऊं।
किस मुख दूध पिलाऊं ?”
लंका में रावण ने जन्म लिया है, उसकी बीस भुजाएं हैं और दश शीश हैं। उसकी माता कहती है कि उसे उसके कौन-से मुख से दूध पिलाऊं?”
राज बोला, “बहुत ठीक ! बहुत ठीक ! तुमने सही अर्थ लगा लिया।”
दूसरा पहर हुआ तो पक्षी कहने लगा :
ऐसो कहूं न दीख,
ऐसो कहूं न दीख।
राजा बोला, ‘पंडितानी, इसका क्या अर्थ है ?”
पडितानी नेसमझाया, “महाराज ! सनो, पक्षी बोलता है :
“घर जम्ब नव दीप
बिना चिंता को आदमी,
ऐसो कहूं न दीख,
ऐसो कहूं न दीख !”
चारों दिशा, सारी पृथ्वी, नवखण्ड, सभी छान डालो, पर बिना चिंता का आदमी नहीं मिलेगा। मनुष्य को कोई-न-कोई चिंता हर समय लगी ही रहती है। कहिये, महाराज! सच है या नहीं ?”
राजा बोला, “तुम ठीक कहती हो।”
तीसरा पहर लगा तो पक्षी ने रोज की तरह अपी बात को दोहराया :
“अब हम करबू का,
अब हम करबू का ?”
ब्रह्राणी राजा से बोली, “महाराज, इसका मर्म भी मैं आपको बतला देती हूं। सुनिये:
पांच वर्ष की कन्या साठे दई ब्याह,
बैठी करम बिसूरती, अब हम करबू का,
अब हम करबू का।
पांच वर्ष की कन्या को साठ वर्ष के बूढ़े के गले बांध दो तो बेचारी अपना करम पीट कर यही कहेगी-‘अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” सही है न, महाराज !”
राजा बोला, “पंडितानी, तुम्हारी यह बात भी सही लगी।”
चौथा पहर हुआ तो पक्षी ने चोंच खोली :
“सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !”
तभी राज ने ब्रह्राणी से कहा, “सुनो, पंडितानी, पक्षी जो कुछ कह रहा है, क्या वह उचित है ?”
ब्रहाणी मुस्कायी और कहने लगी, “महाराज ! मैंने पहले ही कहा है कि पक्षी अधकट बात कहता है। वह तो ऐसे सब ब्रह्राणों के मरने की बात कहता है :
विश्वा संगत जो करें सुरा मांस जो खायें,
बिना सपरे भोजन करें, वै सब बम्मन मर जायें
वै सब बम्मन मर जायें।
जो ब्राह्राण वेश्या की संगति करते हैं, सुरा ओर मांस का सेवन करते हैं और बिना स्नान किये भोजन करते हैं, ऐसे सब ब्रह्राणों का मर जाना ही उचित है। जब बोलिये, पक्षी का कहना ठीक है या नहीं ?”
राजा ने कहा, “तुम्हारी चारों बातें बावन तोला, पाव रत्ती ठीक लगीं। तुम्हारी बुद्वि धन्य है !”
राजा-रानी ने उसको बढ़िया कपड़े और गहने देकर मान-सम्मान से विदा किया। अब पुरोहित का आदर भी राजदरबार में पहले से अधिक बढ़ गया।

Thursday, August 2, 2007

राष्ट्रवादी "मूस मुटाये लोढा होए"

आज देश में जो कुछ भी गलत हो रहा हैं उसका दोष लोग नेता,सरकारी तंत्र,पुलिस और भ्रष्ट प्रशासन को देते हैं! "भ्रष्ट" यानी भ्रष्ट नेता,भ्रष्ट सरकारी तन्त्र, भ्रष्ट पुलिस... तमाम भ्रष्ट! तो समस्या जन्म लेती है भ्रष्ट आचरण से यानी इन सभी के पीछे है भ्रष्टाचार! और भ्रष्टाचार क्यो है? नैतिक मूल्यों की कमी से !..... राष्ट्रवादी मूल्यों के अव्मूल्यन सें !.... देश में IAS, IPS, मंत्री, नेता,वैग्यानिक,सैनिक,डाँक्टर आदि आदि हज़ार नौकरीवर,पेशेवर,विशेषग्यवर हैं जिनकी इस देश में कोई कमी नही हैं,पर जो कमी है वो इन सब मे समाहित है "भ्रष्टाचार" ! अब डाँक्टर बनना है तो बायोलाजी पढो, वैग्यानिक बनना है तो फ़िज़िक्स केमेस्ट्री पढो,IAS IPS बनना है तो सामान्य ग्यान, और नेता बनने को तो अंगूठा छाप भी चलेगा,उसे तो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपती बनने में भी कोई संवैधानिक बाधा नही है! तो भईया नैतिकता आये कहाँ से? Moralscience का विषय तो शिक्षा व्यवस्था मे आप की समझ की कली खिलने से पहले ही काफ़ूर हो चलता है(चौथी पाँचवी तक) उसके बाद पाईथागोरस प्रमेय, H2O यानी २ हाइड्रोजन १ आक्सीजन बनाता है पानी, प्लासी का युध्द और मेंढक चीरने के बाद ही बडे बडे सर्टिफ़िकेट मिलते है और उसके बाद ही IAS,IPS,वैग्यानिक,सैनिक,डाँक्टर बनने की प्रशस्ती प्राप्त होती है! डाँक्टर बनने में इस बात की कोई परीक्षा नही ली जाती की वो कितना नैतिक डाँक्टर बनेगा, इंजीनियर भी ब्रिज बनाने की काबिलियत तो समझा देता है पर कितने नैतिक रूप से? इसकी परीक्षा नही होती, इसी तरह IAS,IPS को भी ईमानदारी की कोई परीक्षा नही देनी पडती, रहा नेता ... तो वो पहले से ही हर शर्त से ऎग्ज़ेम्टेड है! एक तरफ़ से हमको तो लगता है कि "भ्रष्टाचार" से किसी को परेशानी नही है,क्योंकी जब जब देश दुनिया ने कोई परेशानी को पहचाना है उसका निदान भी ढूढा है... पोलियो के लिये ड्राप आयी,हेपेटाइटिस के लिये इंजेक्शन,और AIDS के लिये कन्डोम ! पर भ्रष्टाचार निरोध हेतु न ड्राप की खोज हो रही है ना इंजेक्शन की ना तो कोई कन्डोम ही इजाद किया जा रह है... और तो और बाबा रामदेव के पास भी कपाल्भाती जैसा कुछ कारगर इस विषय में नही है! तो "भ्रष्टाचार" मिटे तो मिटे कहाँ से? ऊपर से ग्लोब्लाइजेशन से आ रहा है और उपभोगतावाद इस समय देश की किसी को नही पडी, बजरंगलाल छत्तीसगढ़वाले जैसे और भी कुछ लोग ज़रूर इस पर काम कर रहे होंगे पर वे भी क्या करें राष्ट्रहित सोचने वालो की स्थिति तो है मानो "मूस मुटाये लोढा होए"

Friday, June 22, 2007

नमस्कार

सभी ब्लागिओ को मेरा नमस्कार है! नाम के अनुसार अपना मत जल्द ले कर आप के सामने हाज़िर हो रहा हु!