
अपने सम्विधान पर बचपन से हम २६ जनवरी को खूब गर्वित इतराते है, उसपे पालन कर जीने मरने की कसमे खाते है! कमाल है सरकारे ही अब सम्विधान की पर्वाह नही करती.....
जब भारत विश्व शक्ति बनकर उभरने का दावा कर रहा है,ऐसे समय देश में हर चौथा व्यक्ति भूखा है. भारत में भूख और अनाज की उपलब्धता पर भारत के एक ग़ैर-सरकारी संगठन की ताज़ा रिपोर्ट में ऐसा दावा किया गया है.
यह आंकड़े नवदान्य ट्रस्ट द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट का हिस्सा हैं जिसमें कहा गया है कि 'बढ़ती महंगाई और सरकारों द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में हाल के दिनों में फैलाई गई अव्यवस्था ने स्थिति को और भी बदतर कर दिया है.'
ग़ैर-सरकारी संगठन की रिपोर्ट के अनुसार देश में तकरीबन 21 करोड़ से अधिक जनसँख्या को भर पेट भोजन नहीं मिल पाता है. संख्या के अनुपात में यह अफ़्रीका के सबसे गरीब देशों से भी ज़्यादा है.
'भूख के कारण' नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र में खाद्य सामग्री के वितरण में निजी कंपनियों के बढ़ते दख़ल ने खाने पीने की चीजों की कीमतें बढ़ा दी हैं.
उदारीकरण के बाद से सरकार ने 'सही ज़रूरतमंदों को ही छूट' के नाम पर सिर्फ़ बहुत गरीब वर्गों को ही सार्वजानिक वितरण प्रणाली के तहत सस्ते अनाज देने की सुविधा जारी रखी है.
पहले सस्ते दामों पर खाने पीने के सामान की सुविधा सभी नागरिकों को थी. अब यह सुविधा जनसँख्या के सिर्फ़ एक छोटे वर्ग को हो मिल रही है. एक अनुमान के मुताबिक गरीबों में भी ये सुविधा केवल 10 प्रतिशत लोगों को ही उपलब्ध है.
ट्रस्ट की प्रमुख वंदना शिवा के अनुसार "भले ही सत्ताधारी वर्ग और देश का एक वर्ग जीडीपी यानी सकल घरेलु उत्पाद को बढ़ाने को ही सबसे अहम काम समझ रहा है पर सच तो यह है कि एक आम आदमी को प्रति वर्ष मिलने वाली खाद्य सामग्री पिछले 10 बरसों के भीतर 34 किलो कम हो गई है."
उनके अनुसार वर्ष 1999 के आसपास भारत में खाद्य सामग्री की प्रति व्यक्ति सालाना खपत 186 किलोग्राम थी जो साल 2001 तक 152 किलोग्राम जा पहुँची.
भारत में आर्थिक उदारीकरण का काम 90 के दशक में शुरु हुआ था. तब केंद्र में कांग्रेस पार्टी की नरसिंह राव सरकार थी. पिछले पांच बरसों में रिपोर्ट के अनुसार गरीबों को मिलने वाली खाद्य सामग्री में भारी कमी आई है.
'भूख के कारण'
ट्रस्ट के अनुसार खाद्य पदार्थों की बढ़ी कीमतों की सच्चाई को छिपाने के लिए सरकार ने खाद्य पदार्थों को स्टील और धातुओं की कीमतों के आकलन वाले वर्ग में डाल दिया है, जिनकी कीमतें पिछले दिनों तेज़ी से गिरी हैं. इस तरह खाने पीने की वस्तुओं की थोक कीमतें में गिरावट तो देखी गई है लेकिन असल में खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ी हैं.
सालाना महंगाई जिस फ़ार्मूले से आंकी जाती हैं उसमें ज़रुरत के सामानों के अलग अलग वर्ग तैयार किए गए हैं जिसमें हाल की कीमतों की तुलना के आधार पर एक महँगाई दर आँकी जाती है.
इससे खाने पीने की वस्तुओं पर सरकार द्वारा दी जाने वाली छूट यानी सब्सिडी में भी इज़ाफ़ा हुआ है. आर्थिक उदारीकरण के पहले दी जाने वाली सब्सिडी 2450 करोड़ रुपए थी जो पिछले वित्तीय वर्ष में बढ़कर 32667 करोड़ रुपए हो गई है. कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि अगले साल खाद्य सामग्री पर दी जाने वाली कुल छूट 50,000 करोड़ रूपए हो जाएगी.
वंदना शिवा कहती हैं, "हम अपने लोगों को भूखा रखने के लिए ज़्यादा पैसा ख़र्च कर रहे हैं."
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को हर एक नागरिक के लिए सार्वजानिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था करनी होगी जिसका नियंत्रण स्थानीय स्तर पर किया जाए. साथ ही एक ऐसी कृषि व्यवस्था को दोबारा बढ़ावा देना होगा जहाँ केवल 'कैश क्रौप पर ज़ोर न होकर पहले की तरह हर तरह के अनाज उपजाने को बढ़ावा दिया.
रिपोर्ट का दावा है कि हाल के बरसों में अनाज उगाने वाली 80 लाख हेक्टेअर भूमि पर एक्सपोर्ट की जाने वाले सामग्री उगानी शुरू कर दी गई है जबकि एक करोड़ हेक्टेअर से ज़्यादा ऐसी ज़मीन पर जैविक ईधन पैदा करने वाले पेड़ लगा दिए गए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए ली जाने वाली ज़मीनों से कृषि क्षेत्र पर दबाव और बढ़ेगा.