बहुत किचकिचा के लिखा है आपने,लग रहा घर की याद कुछ ज़्यादा ही आ रही है....यहां अपना भी मन कचकचा गया है साथी...अच्छा लिखा है...... गाज गिरे ऐसे मौसम पे सखि जहँ भीतर आग और बाहर पानी
गोरखपुर में जन्मा,लख्ननऊ में पला पढ़ा नौकरी नें मुम्बई मे पटखा,टी.वी.चैनेल की रोज़ी से रोटी चल रही है,लाईट कैमरा ऎक्शन के बाद जो भी होता है उसमें से अनचाहा मैं काट देता था, एक दशक से मुम्बई में बस यहीं किये जा रहा था! अब दिल्ली के बडॆ दिल मे समा गया हूँ !
3 comments:
गाज गिरे ऐसे मौसम पे सखि
जहँ भीतर आग और बाहर पानी ......
--बहुत सुन्दर!
इसको कहते हैं --
सावन आग लगाये
बहुत किचकिचा के लिखा है आपने,लग रहा घर की याद कुछ ज़्यादा ही आ रही है....यहां अपना भी मन कचकचा गया है साथी...अच्छा लिखा है...... गाज गिरे ऐसे मौसम पे सखि जहँ भीतर आग और बाहर पानी
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