Tuesday, January 5, 2010
इस्लामी मीनारों पर बैन कि तैयारी है !
मामला स्विट्ज़रलैंड का है और स्विस संसद अब अपने राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए संगठित हो उठ खड़ा हुआ है ! उसे खतरा लग रहा है इस्लाम से , इसके चलते भारी पैमाने पर एक प्रस्ताव पर वोटिंग करवाई गई है और जिसे स्विस संसद की सबसे बड़ी पार्टी स्विस पीपल्स पार्टी का प्रबल और पूर्ण समर्थन प्राप्त है ! ये प्रस्ताव है " स्विट्ज़रलैंड में सभी इस्लामिक मीनारों पर बन लगाने के लिए "! प्रस्ताव के समर्थको का प्रबल मत है की यदि देश में इस्लामिक मीनारों का निर्माण करने दिया गया तो शरिया क़ानून को बल मिलेगा जो स्विस लोकतंत्र के लिए खतरा बन जायेगा!
रेफ्रेंडम के लिए अभियान
इस रेफ्रेंडम के लिए स्विस संसद के सबसे बड़े दल पीपल्स पार्टी ने कई माह से अभियान चला रक्खा है इस अभियान के तहत उसने एक लाख से भी ज्यादा वोटरों के दस्तखत वाला पत्र संसद को सौपा था जिसके बाद वोटिंग हुई !
स्विस सरकार क्यों चिंतित है
स्विस सरकार ने इस प्रस्ताव के विरुद्ध अपना मत रखते हुए चिंता व्यक्त की है ! सरकार का मानना है की इस प्रस्ताव के पारित होने से मुसलमानों के साथ भेदभाव होगा, इस्लामिक आतंकवादी गतिविधिया तेज़ होंगी जिससे तनाव फैलेगा ,साथ ही इस्लामी देशो के साथ उसके संबंधो को भी छति होगी !
स्विस सरकार ने लोगो से अपील की है कि वे इस रेफ्रेंडम के खिलाफ वोट दे, लेकिन वोटिंग के शुरूआती नतीजे सरकारी मत के एकदम विरुद्ध है और लग रहा है कि ये प्रस्ताव भारी बहुमत से पास हो जाएगा !
इस्लामिक मीनारों से डर क्यों
रेफ्रेंडम के समर्थको ने कहा है कि मीनारे धार्मिक प्रतीक से कही ज्यादा है, इनके अधिकता से सन्देश जाएगा कि देश में इस्लामी क़ानून मान्य है यही नहीं शरिया विचार को बढ़ावा मिलेगा और भविष्य में इसे लागू किये जाने कि मांग उठेगी! रेफ्रेंडम के समर्थको ने याद दिलाया है कि शरिया स्विट्ज़रलैंड के कानूनों के खिलाफ है !
स्विट्ज़रलैंड में इस्लाम कि स्थित
स्विट्ज़रलैंड में वर्तमान में चार लाख से भी ज्यादा मुसलमान है पर मस्जिदों कि संख्या सिर्फ चार है पाचवी मस्जिद का विचार उठते वक्त ही ये मुद्दा सामने आ गया है ! स्विट्ज़रलैंड में इस्लाम इसाई धर्म के बाद सर्वाधिक प्रचलित है पर अधिक मुखर नहीं है !
स्विस मुस्लिम क्यों डरे है
देखा जाए तो रेफ्रेंडम का रिजल्ट सरकार पर तबतक बाध्य नहीं है जबतक कि वोटिंग अधिकारी प्रान्त बहुमत से इसे स्वीकार नहीं कर ले ,लेकिन यदि वर्तमान वोटिंग के नतीजे प्रस्ताव के हक़ में निकले तो मुसलमान खुल कर नहीं रह सकेंगे और उनपर हमेशा साया मडराता रहेगा कि उनका भी हाल वैसा ही रहेगा जैसा पाकिस्तान में रह रहे गैर मुसलमानों का है !
मानवाधिकार संगठन क्या कहते है
यु एन मानवाधिकार प्रमुख नवी पिल्लै तथा मशहूर मानावाधिकार संस्था एमिनेसटी इंटरनेशनल ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है और चेतावनी दी है कि यह प्रस्ताव विश्वव्यप्या धार्मिक आज़ादी के अधिकार के विरुद्ध है !
मुद्दे से उठे अहम् सवाल
मीनार धर्म से हट कर निर्माण शैली के प्रतीक होते है आखिर क्या कारण है के स्विस संसद इससे असुरक्षित महसूस कर रहा है और विश्वव्यापी धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध वो लामबद्ध हो रहा है ?
स्विट्ज़र लैंड में ऐसी मान्यता क्यों बन रही है कि शरिया विचारधारा को बढ़ावा मिलने से अराजकता होगी और तनाव फैलेगा ?
स्विस मुस्लिम समाज ने मीनारों से ऐसा क्या कृत्या किया है जिसके चलते ये सन्देश सर्वव्यप्या हुआ जबकि लगभग चार लाख मुसलमानों के बीच सिर्फ चार ही मस्जिद अबतक है ???
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9 comments:
अब हमारी सुनिये : सिर्फ मीनार इस्लाम और शरिया का प्रतीक नहीं है, वो मस्जिद की वास्तुकला का एक हिस्सा मात्र है। मीनारों की ऊंचाई सिर्फ इसलिए होती है कि अज़ान की आवाज़ दूर तक जाए। जो लोग अपने आप को खुले दिमाग़ वाला (Open minded ) कह रहे हैं हमें लगता है कि उनका दिमाग़ ही चल गया है। लोकतन्त्र (Democracy) की बात तो करते हैं पर लोकतन्त्र कहां है जिसमें आम इंसान अपने आप को आज़ाद और महफूज़ समझ सके।
दुनिया के किसी देश में ऎसा कानून नहीं जिसमें शरिया कानून का कोई हिस्सा मौजूद न हो। और शरिया कानून के नाम पर इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। जैसे क़त्ल करने की सज़ा मौत, हर देश में कानून है। आज जो बलात्कारियों को मौत की सज़ा की मांग उठा रहे हैं क्या वो जानते हैं कि इस्लामी शरिया में ये कानून पहले से ही मौजूद है, और यहां तो मामला सिर्फ मीनार बनाने का है न कि शरिया कानून लागू करने का।
जो लोग मीनारों के निर्माण पर रोक लगाने के लिये तर्क दे रहे हैं वो भेदभाव का गंदा खेल खेलने के सिवा कुछ नहीं कर रहे।
स्विज़रलैंड में 157 मस्जिदें हैं लेकिन मीनार सिर्फ 4 मस्जिदों पर हैं ।स्विज़र्लैड की आबादी लगभग 77 लाख है, जिसमें मुस्लिम आबादी लगभग 4.5 % है।जिस देश में एक समुदाय जिसकी आबादी 4.5 % हो वहां इस तरह के मतदान का क्या मतलब है, क्या ये मतदान एक तरफा नहीं है ?
क्या किसी देश में एक समुदाय की जनसंख्या कम हो तो क्या उसे अपनी संस्क्रति के साथ जीने का हक़ नहीं ? अरब के अंदर लाखों ईसाई हैं जो पीढियों से ईसाई हैं और बिना किसी परेशानी के अपनी संस्क्रति के साथ जी रहे हैं।
अल्लहम्दोलिल्लाह इस्लाम आज दुनिया में सबसे तेज़ी से फेल रहा है, ये इस्लाम में दाख़िल हो रहे इंसानों को रोकने की कोशिश है ताकि लोग इस्लाम के ख़िलाफ हो जायें और इस्लाम की तरफ न जायें। क्या ये लोग इस तरह से इस्लाम को रोक सकते हैं ?
हमारे ख़्याल से कभी नहीं आप क्या कहते हैं ?
इस लेख का सचित्र आनन्द लेने के लिए देखें
"अब मीनार पर तकरार"
http://kuchtobadlega.blogspot.com/2009/12/blog-post_1175.html
अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया
अवधिया चाचाजी,
हकीकत ये है कि आज समूचा यूरोप और पश्चिमी जगत उधर मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या से चिन्तित है, उन्हें लग रहा है कि संख्या में ज्यादा होते ही किसी खास राज्य आदि में शरीयत लागू हो जायेगा। स्वीडन और ब्रिटेन जैसे खुले देशों में भी सड़कों पर बढ़ते "बुरके" के चलन और "ऊंचे पायजामों-दाढ़ी" से वे आतंकित हो रहे हैं, उन्हें उनके अस्तित्व पर संकट महसूस होने लगा है… यह तो अभी स्विट्ज़रलैण्ड में शुरुआत भर है, जल्दी ही यह यूरोप के अन्य देशों में भी फ़ैल जाने वाला है… यदि इस्लाम वाकई इतना ही शान्तिप्रिय और अग्रगामी धर्म है तब पूरा विश्व इससे इतना डरा हुआ क्यों है? चाचा जी ये न कहियेगा कि यह सब पश्चिम की चाल है… क्योंकि विश्व में मुस्लिमों की संख्या भी अरबों में है, वे इस दुष्प्रचार (यदि है) का मुकाबला क्यों नहीं कर पाते? आपने मेरा एक लेख नहीं पढ़ा होगा, पढ़ियेगा जिसमें बताया गया है कि पूरे इस्लामिक जगत में जितने विश्वविद्यालय हैं जिनमें वैज्ञानिक और अंग्रेजी की शिक्षा दी जाती है उससे अधिक विश्वविद्यालय तो अमेरिका के एक-दो प्रान्तों में ही हैं। मेरा खयाल है कि मुस्लिमों की धर्मान्ध छवि और शैक्षिक पिछड़ेपन की वजह वे खुद हैं… लेकिन दोष दूसरों को देते हैं। खैर जब आप अवध जायेंगे तो आपको पता चल ही जायेगा कि अवध इतना पिछड़ा क्यों है, क्योंकि वहाँ के इस्लामी बादशाहों ने सिवाय शतरंज खेलने और पान खाने के अलावा कुछ और नहीं किया… कुछ स्कूल खोलते, कुछ विश्वविद्यालय खोलते तो बात बदलती…
@अवधिया जी , वे जानते हैं की इस्लाम का घोषित उद्देश पूरी दुनियां को अपने रस्ते पर चलाना ही नहीं है ,और सब पंथ,धर्म गलत हैं और उनका समूल नाश कर्तव्य है ' जिहाद ' है . योरोपियंस बुद्धिमान हैं ,इतिहास पढ़ा भी है भोगा भी .वे अपनी जीवन शैली पर मंडराते खतरों से सावधान हैं .वे स्वयं भी ईसाइयत से भी मुक्त हो रहे हैं और आज के नए मानव के हक़ में धर्म की विभीषिका को जानते हैं.वे जानते हैं की इस्लाम कैसे घुसपैठ करता है छद्म तरीके से और व्यवस्था तोड़ काबिज होता है .योरोप के देश आपकी तरह ' महामानव ' नहीं है .इन्सान हैं .
:Mr Avadhiya Ji Please Read My Blog : www.taarkeshwargiri.blogspot.com
मुसलमान और आतंक- आखिर इतने करीब क्यों
आखिर क्या वजह हो सकती है, इतनी घनिष्टता की, इतने गहरे रिश्ते की (मुसलमान और आतंक), हिंदुस्तान , पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इरान, इराक, यूरोप और अमेरिका अगर परेशान हैं तो सिर्फ और सिर्फ मुसलमान आतंकवादियों से , आखिर क्या वजह हो सकती है, मैं पूछना चाहता हूँ इश्लाम के उन विद्वानों से जो कुरान और इश्लाम मैं गहरी आस्था रखते हैं और बड़ी-बड़ी बाते करते हैं,
ज़रा और उम्दा सोचें
देखते हैं आप कहां तक उम्दा सोचते हैं?
आप की जानकारी के लिये सिर्फ इतना बता दें कि वहां की सरकार ही इस मतदान के ख़िलाफ है।
अधिक जानकारी के लिये.
अब मीनार पर तकरार
@ kuch to badlega
भाई आप लगता है पोस्ट नहीं पढ़ते बस झूल पड़ते है !
आप से निवेदन है ब्लॉग जगत में कूदने से पहले थोडा अकल को धार मार लिया करे !
ये कोई समीक्षा नहीं रिपोर्ट है !
आप मेरी सोच की दूरी बिना अकल लगाए और पढ़े कैसे नाप सकोगे ???
दोस्त मुर्खता से कुछ तो बदलेगा ज़रूर पर भला नहीं होगा !
आप शायद टिप्पणिया गुस्से में पढ़ते हैं
आप को हमारी अक़्ल में धार नहीं लग रही कोई बात नहीं आप की बात का हम बुरा नहीं मानते
हम तो अपने आप को कम अक्ल ही समझते हैं बड़ी अक़्ल वाले तो टिप्पणियां कर चुके और अपनी सोच बता चुके,
और हमने आपसे कहा और उम्दा सोचें
हम आपकी बेहतर सोच में इज़ाफ़ा चाहते हैं आप नहीं चाहते क्या?
अरे उमदा बेटा मीनारों पर पाबन्दी लग चुकी, परन्तु यह तुम्हारी तस्वीर में जो इसाई मीनार ढा रहा है मुसलमान हो चुका, अवध की कसम
मीनारों के विरोधी स्विस नेता ने किया इस्लाम कबूल
http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/01/converts-to-islam.html
अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया
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