Thursday, December 10, 2009

लखनऊ प्रकरण: मैंने सलीम खान को नहीं मारा!!!

कहते है "जब वख्त बुरा होता है तो ऊट पर बैठे को कुत्ता काट लेता है " मै तो गधे पर सवार था ! सोचता हूँ क्या ज़रुरत थी मुझे सलीम खान को महफूज़ भाई से कह कर बुलवाने की !
हुआ यू की सलीम भाई को मैंने मिलने का निवेदन किया तो वे १५ मिनट में आ गए!
हम दोनों ठहरे लखनऊवा तो एक दुसरे के बारे में ज्ञानवर्धन करने लगे ! मैंने सलीम भाई के सिक्षा दीक्षा के बारे में पूछा, तो वे लखनऊ के मेरे यार दोस्तों के बारे में !!!
दोनों की मंशा एक दुसरे के परिचित से परिचित तलाशने की थी जिसे कहते है कॉमनफ्रेंड ! इसी सिलसिले में मै अपने के के सी और लोहिया छात्र वाहिनी वाले दिनों के बारे में बता रहा था ,सलीम और मै एक दुसरे से मुखातिब थे जिससे महफूज़ भाई बोर हो रहे थे सो वो खुद को बहलाने के लिए दाहिने बाए हो लिए !

मै सलीम के ब्लॉग विचारों का घोर विरोधी रहा हूँ ,काफी पहले महफूज़ भाई से सलीम के बाबत जब बात हुई थी तो उन्हों ने कहा था " सौरभ भाई सलीम के विचारों से मै सदा असहमत रहा हूँ जिसके चलते मेरा उससे झगडा भी हो चुका है! उसे बरगलाया गया है ! अपने लालन पालन में सलीम बड़े ही सदभाव से रहा है यहाँ तक उसे काफी श्लोक भी कंठस्थ है, कई हिन्दू उसके प्रिय अभिन्न मित्र है बस वो भ्रमित है!
मुझे उम्मीद की किरण दिखाई दी और तभी सोचलिया था की जब भी अब कभी लखनऊ जाऊंगा अपने इस भाई( सलीम ) को विनम्रता से समझाने की कोशिश करूंगा ताकि सामजिक सौहार्द का सिपाही बन वो भी कदम से कदम मिला कर साथ चले !!

अच्छा!... अब चूकी मै सलीम भाई के विचारों से सहमत नहीं रहा तो स्वाभाविक था मेलमिलाप के बाद जो गर्मजोशी थी वो बहस में तब्दील हुई और बहस हुज्जत में !!!

अब महफूज़ भाई लौटे तो ध्यान बटा! कुछ लोग आस पास होआये थे जो रस ले रहे थे ! महफूज़ भाई बोले " यार धीरे बात करो लोग इधर देख रहे है! चलो कही और चले !"
अब हम सहारा भवन की और चल पड़े जहा मेरी और महफूज़ भाई की गाडी खड़ी थी,सलीम अपनी गाडी से बढे और मै और महफूज़ पैदल !

लखनऊ की ठण्ड शाम में स्वेटर और जैकेट पहने महफूज़ भाई के माथे पर पसीना साफ़ चमक उठा था ,सब सहज था पर महफूज़ भाई टेंशन में थे ,न जाने उन्हें क्या ग़लतफ़हमी हुई! बोले भाई आप लोग सब किये धरे पर पानी फेर देंगे मैने कहा भाई आप निश्चिंत रहे ऐसी कोई बात नहीं है भरोसा कीजिये ! अब मालूम हो रहा है महफूज़ भाई किन्ही पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो चुके थे!


सहारा भवन पर सलीम भाई पहले पहुच चुके थे फह्फूज़ भाई ने ग्रीनटी आफर किया मै पहले ही काफी चाय गटक चुका था सो मै कहा "भाई आप लोग रुको मै ले कर आता हूँ आप लोगो के लिए" महफूज़ भाई बोले "क्यों शर्मिंदा करते हो निमंत्रण मैंने दिया है और वैसे भी तुम विश्वविद्यालय में मुझ से एक साल जूनियर हो" कहकर अपने और सलीम के लिए चाय लेकर आये!
इसबीच थोडा सा ही सही पर हां मुद्दों को लेकर हमारी गरमा गरम बहस हुई इसी बीच महफूज़ भाई ने मोबाइल से फोटो खीची बातो में उलझ मैंने ध्यान नहीं दिया !

पर भाइयो हमने पूरे प्रकरण में कोई हाथापाई नहीं की ना ही किसी अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया !

सलीम भाई से मेरा वैचारिक मतभेद बना हुआ है और इसपर मै ब्लॉग पर ही उनसे निपटने के लिए सक्षम हूँ ! और हां हाथापाई की मानसिकता वाले तो सलीम भी नहीं लगे!
मेरा मोबाइल सेवा दाता ने विच्छेदित कर रखा था सो महफूज़ भाई से बाद में इस बारे में कोई बात नहीं हो सकी ,मै समय के बहुत बुरे दौर से गुज़र रहा हूँ सो इसपर ध्यान न दे सका ,कल ब्लोग्वानी पर हाहाकार देखा मजबूरन समय निकलना पड़ रहा है !

पर सार्थक होगा यदि आप महफूज़ भाई के द्वारा अपने उस पोस्ट पर किये सवाल का जवाब दे की....
क्या ब्लागरों को भड़काऊ चीज़ें लिखनी चाहिए? क्या धर्म ऐसी चीज़ है जिसके लिए सड़कों पे झगडा जाये? क्या किसी धर्म के खिलाफ लिखने से या किसी धर्म के बारे में लिखने से सहिष्णुता बढ़ेगी या फिर विद्वेष फैलेगा?

14 comments:

अवधिया चाचा said...

nice, पहली लाइन में आप वक्‍त लिख रहे हैं या कमबख्त, ऊँट इस कमेंट से कापी कर लें कुत्‍ता कभी मुझे लिखना होगा तो यहाँ से कापी कर लूंगा(मैं जो कीबोर्ड प्रयोग करता हूँ उसमें टाइप नही कर पाता),
हो सके तीसरे किरदार से कहें वह भी अपना ब्‍यान नोट करवादे, अवधिया की तरफ से कहना प्रवचन का समय नहीं है यह,अन्‍यथा वह फेल होजाएगा, यार लोग स्‍टोरी एवार्ड जीत लेंगे

अब अवधिया की दो ही इच्‍छाऐं है एक अवध देखना दूसरा खान का ब्‍यान पढना

अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया

दिनेशराय द्विवेदी said...

महफूज भाई अच्छे कल्पनाशील हैं।

Pramendra Pratap Singh said...

भाई जी आप विचारवान हो, आप किसी भैंस के आगे बीन बजाने के प्रयास कर रहे थे।

अपने कुछ लेखो पर, आपकी टिप्‍पणी पाई थी बहुत अच्‍छा लगा था।

Unknown said...

यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप लोगो के बीच कुछ भी अशोभनीय नहीं हुआ था। मतभेद तो खैर होते ही रहते हैं किन्तु मर्यादा बनी रहनी चाहिये।

स्वप्न मञ्जूषा said...

चलिए ये भी अच्छा रहा कि आपका पक्ष भी सुनने को मिला...
वहां जो भी घटित हुआ है बहुत ही स्वाभाविक बात थी.....
इसके लिए न तो परेशान होने कि आवश्यकता है न ही शर्मिंदा....
let us agree to disagree वाले फोर्मुले पर चलना श्रेयष्कर होता है...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सौरभ भाई, मैं आपके साथ हूँ आपने जो किया एकदम सही किया !

संजय बेंगाणी said...

टेंशन नॉट. जब गलत नहीं किया तो फिक्र कैसी?


आपकी परेशानियाँ जल्द खत्म हो ऐसी कामना करता हूँ.

Taarkeshwar Giri said...

ये पढकर के बहुत ही खुशी हुई की आप दोनों मैं सिर्फ़ मौखिक युद्ध हुआ और एसा ही होना चाहिए, सलीम भाई सचमुच भटके हुयें हैं, आज जरुरत है उनको समाज के मुख्या धारा मैं लाने की,

मैं भगवन से ये ही प्राथना करूँगा की आपकी सारी परेशानिया जल्द से जल्द ख़त्म हो और ये नाचीज भी दिल्ली मैं ही रहता है कभी यद् जरुर करियेगा।
ईमेल: tkgiri1@gmail.com

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

व्यस्तता और तनाव के बावजूद आपने अपना पक्ष मर्यादित रखा. आप बधाई के पात्र हैं. अब देखिये पिछले काफी दिनों से देख पढ़ सुन मैं भी परेशान हो लिखने पर मजबूर हो चला था.
आप सभी ब्लोगर बंधुओं के लिए अच्छे दिनों की कामना करता हूँ.
--
टिप्पणी कीजिये खूब कोई शरारत ना कीजिये - ग़ज़ल

Rajeysha said...

दरअसल लोग हर अच्‍छी चीज का बुरा इस्‍तेमाल पहले और लगातार करते हैं... अच्‍छी बातें वो वि‍चारणीय वि‍षय होते हैं जो दंगों के बाद सोचे जा सकते हैं।

कुछ लोग परमाणु ऊर्जा हो या ब्‍लॉगर सेवा, बम बनाना ज्‍यादा पसंद करते हैं।

दिवाकर मणि said...

महफूज भाई से मेरा परिचय सुरेश चिपलूनकर जी के ब्लॉग पर उनके द्वारा लिखी गई टिप्पणियों के माध्यम से हुआ है, जिसके द्वारा मुझे वे एक सुलझे हुए इंसान लगे। हां, जब आपके और सलीम मियां के बीच तथाकथित हुए वाकए की जानकारी उनके (महफूज भाई) के ब्लॉग से मिली तो थोड़ा कोफ्त सा हुआ कि आप क्यूं उस पागल (सलीम) से मिले, और क्यूं महफूज भाई ने इस वाकए को लेखनी से प्रसृत किया?
मैंने तीन-चार बार महफूज भाई के ब्लॉग पर गया और उनके रिपोर्ट और नीचे की टिप्पणियों को पढ़ा किंतु मैं अपनी टिप्पणी देने से बचा। हां, उत्सुकता थी कि इस मुद्दे पर आप अपनी बात रखते तो मामला साफ हो जाता।
अस्तु, आपने अपनी बात सम्यक तरीके से रखी है, जिससे पूरा मामला स्पष्ट हो गया। आपको परेशान होने की अब बिल्कुल जरुरत नहीं है। हां, एक शुभचिंतक होने के नाते मेरी आपको सलाह है कि आगे से आप सलीम, , कैरानवी जैसों के मुंह ना लगें और ना हीं उनकी गंदी मानसिकता वाली लेखनी को ही।
शुभाशंसा सहित...

Anonymous said...

u r winner

Smart Indian said...

यह क्या गज़ब कर दिया भाई?
;)

अजय कुमार said...

सौरभ जी २-३ दिन तक ब्लाग जगत में जो शोर था , आपके लेख से वो थम गया । हालांकि दूसरी समस्या (आपने जिक्र नही किया तो मैं भी नही करुंगा ) आपके सामने है , फिर भी आपने समय निकाला , इसके लिये धन्यवाद । आपसे इतना जरूर कहुंगा कि संयम रखें , धीरज से काम लें,ऐसे लोगों का अस्तित्व खत्म हो जाता है अपने आप ।
अवधिया चाचा के लिये एक सलाह- आप अवध जरूर जायें ,तहजीब सीखने का शहर है